महाशिवरात्रि व्रत कथा
व्रत कथा में एक शिकारी की कहानी बहुत ही प्रचलित है। शिकारी जंगल में एक पेड़ पर जाकर बैठ गया और शिकार का इंतजार करने लगा। रात हो गई लेकिन कोई शिकार नहीं मिला। भूख और भय से उसे नींद भी नहीं आ रही थी। संयोग से वह जिस पेड़ पर बैठा था वह बेल का पेड़ था और दिन महाशिवरात्रि का था। उसके पास पीने के केवल जल था जिसका पात्र टूटा हुवा था जब भी वह जल पिता उसमे से कुछ जल नीचे गिरजाता था
शिकार का इंतजार करते हुए वह बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था और जल भी गिर रहा था । सुबह उसे पता लगा कि जहां वह बेलपत्र फेंक रहा था वहां एक शिवलिंग था। इस तरह अनजाने में शिकारी से महाशिवरात्रि का व्रत और शिव का जलाभिषेक हो गया साथ ही उसे हाथो से रात भर शिवलिंग पर बेलपत्र भी अर्पित होते रहे जिसके फलस्वरूप उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
व्रत कथा में एक शिकारी की कहानी बहुत ही प्रचलित है। शिकारी जंगल में एक पेड़ पर जाकर बैठ गया और शिकार का इंतजार करने लगा। रात हो गई लेकिन कोई शिकार नहीं मिला। भूख और भय से उसे नींद भी नहीं आ रही थी। संयोग से वह जिस पेड़ पर बैठा था वह बेल का पेड़ था और दिन महाशिवरात्रि का था। उसके पास पीने के केवल जल था जिसका पात्र टूटा हुवा था जब भी वह जल पिता उसमे से कुछ जल नीचे गिरजाता था
शिकार का इंतजार करते हुए वह बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था और जल भी गिर रहा था । सुबह उसे पता लगा कि जहां वह बेलपत्र फेंक रहा था वहां एक शिवलिंग था। इस तरह अनजाने में शिकारी से महाशिवरात्रि का व्रत और शिव का जलाभिषेक हो गया साथ ही उसे हाथो से रात भर शिवलिंग पर बेलपत्र भी अर्पित होते रहे जिसके फलस्वरूप उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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