नमस्कार दोस्तों,
आज हम ज्योतिष शास्त्र में चंद्र का क्या महत्त्व होता है इस विषय का विवेचन इस लेखमाला में करने का प्रयास करेंगे साथ ही जातक की कुंडली में चंद्र के साथ यदि कोई अन्य ग्रह हो तो जातक और उसके पिता की क्या स्तिथि होगी इसका भी विवेचन करेंगे ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि विस्तार का काम अपने मानस पुत्र अत्रि को सौपा । इन्होने इसके लिए तप शुरू कर दिया । तप करते समय एक दिन इनके नेत्रों से जल की कुछ बहुत ही तेजोमय बुँदे टपकी जिनको समस्त दिशाओं ने स्त्री रूप धारण कर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु इन प्रकाशमयी बूंदों को अपने गर्भ में धारण कर लिया लेकिन अधिक समय तक सभी दिशाएं इस गर्भ को धारण नहीं कर सकी और उनको इस गर्भ को त्यागना पड़ा । इसके बाद इस त्यागे हुवे गर्भ को ब्रह्मा जी ने पुरुष रूप प्रदान किया जो की चंद्रमा के नाम से विख्यात हुवा । ब्रह्मा जी ने इनको वनस्पतियो, नक्षत्रो, ब्राह्मणों और तप का स्वामी बनाया ।
दक्ष प्रजापति के 27 पुत्रियां थी जिनका विवाह चंद्रमा से किया गया जिनके नाम से 27 नक्षत्र है जिनमे से रोहिणी चंद्रमा को विशेष प्रिय थी रोहिणी के प्रति चंद्रमा का यह विशेष अनुराग को देखकर दक्ष प्रजापति क्रोधित हो गए और चंद्रमा को क्षयग्रस्त होने का श्राप दे दिया । श्राप के प्रभाव से चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गए फिर भगवान विष्णु ने समुन्द्र मंथन के समय चंद्रमा का पुनरुद्धार किया और भगवान महादेव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया और दक्ष प्रजापति के श्राप को पाक्षिक कर दिया इसलिए चंद्रमा स्थिर नहीं रहते है घटते बढ़ते रहते है ।
1 भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में चंद्र को मन का कारक माना गया है यह कर्क राशि का स्वामी होता है ।
2 चन्द्रमा रोहिणी श्रवण और हस्त नक्षत्र का स्वामी माना जाता है ।
3 चन्द्रमा सूर्य और बुध का परम मित्र है और चन्द्रमा का अन्य ग्रहो के साथ सम भाव है ।
4 सूर्य और चंद्र भी परस्पर मित्र है तभी तो अमावस्या को सूर्य चंद्र को अपने आगोश में ले लेता है ।जहा यह दोनों एक साथ होते है और शुभ संयोग में होते है तो वह जातक को मानसम्मान दिलाते है। साथ ही जातक का पिता बहुत ही प्रभावशील वयक्ति होता है । यदि अशुभ संयोग हो तो जातक और उसके पिता को मानसिक वेदना भी देते है
5 चंद्र और मंगल ग्रह जहा यह दोनों एक साथ होते है वह जातक उच्च अधिकारी बनता है । साथ ही जातक का पिता सैन्य सेवा में उच्च शासकीय पद पर बहुत ही प्रभावशील वयक्ति होता है ।
6 चंद्र और बुध ग्रह जहा यह दोनों एक साथ होते है वह जातक और जातक का पिता दोनों ही धनवान और ज्ञानी होते है ।
7 चंद्र और शनि साथ होने से शत्रु नाशक बन जाते है ।
8 शुक्र और चंद्र साथ साथ होने से जातक और उसका पिता दोनों ही भोगविलासी प्रवर्ति के रहते है अपनी पत्नी के साथ अधिक अनुरागी होते है । सप्तम भाव में यदि शुक्र की युति हो तो जातक का जीवन साथी अधिक बुद्धिमान होता है और धन वैभव की कोई कमी नहीं होती बशर्ते जातक अलसी न हो। जातक का पिता जातक से अधिक धनवान होता है ।
9 चंद्र मंदा हो उनको सोमवार का व्रत करना चाहिए एवं प्रत्येक सोमवार को चन्द्रमा के समक्ष चंद्र के मन्त्र का यथाशक्ति जाप भी करना चाहिए ।
10 चंद्र का रंग सफ़ेद और यह चांदी धातु में फलित होता है एवं रत्न मोती होता है ।
मित्रो उपरोक्त वर्णित लेख में चंद्र और उसके साथी ग्रहो के बारे में जानकारी दी साथ ही जातक और उसके पिता की स्तिथि का भी विवेचन किया आशा करता हूँ की यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी ।
।। जय श्री कृष्ण ।।
आज हम ज्योतिष शास्त्र में चंद्र का क्या महत्त्व होता है इस विषय का विवेचन इस लेखमाला में करने का प्रयास करेंगे साथ ही जातक की कुंडली में चंद्र के साथ यदि कोई अन्य ग्रह हो तो जातक और उसके पिता की क्या स्तिथि होगी इसका भी विवेचन करेंगे ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि विस्तार का काम अपने मानस पुत्र अत्रि को सौपा । इन्होने इसके लिए तप शुरू कर दिया । तप करते समय एक दिन इनके नेत्रों से जल की कुछ बहुत ही तेजोमय बुँदे टपकी जिनको समस्त दिशाओं ने स्त्री रूप धारण कर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु इन प्रकाशमयी बूंदों को अपने गर्भ में धारण कर लिया लेकिन अधिक समय तक सभी दिशाएं इस गर्भ को धारण नहीं कर सकी और उनको इस गर्भ को त्यागना पड़ा । इसके बाद इस त्यागे हुवे गर्भ को ब्रह्मा जी ने पुरुष रूप प्रदान किया जो की चंद्रमा के नाम से विख्यात हुवा । ब्रह्मा जी ने इनको वनस्पतियो, नक्षत्रो, ब्राह्मणों और तप का स्वामी बनाया ।
दक्ष प्रजापति के 27 पुत्रियां थी जिनका विवाह चंद्रमा से किया गया जिनके नाम से 27 नक्षत्र है जिनमे से रोहिणी चंद्रमा को विशेष प्रिय थी रोहिणी के प्रति चंद्रमा का यह विशेष अनुराग को देखकर दक्ष प्रजापति क्रोधित हो गए और चंद्रमा को क्षयग्रस्त होने का श्राप दे दिया । श्राप के प्रभाव से चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गए फिर भगवान विष्णु ने समुन्द्र मंथन के समय चंद्रमा का पुनरुद्धार किया और भगवान महादेव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया और दक्ष प्रजापति के श्राप को पाक्षिक कर दिया इसलिए चंद्रमा स्थिर नहीं रहते है घटते बढ़ते रहते है ।
1 भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में चंद्र को मन का कारक माना गया है यह कर्क राशि का स्वामी होता है ।
2 चन्द्रमा रोहिणी श्रवण और हस्त नक्षत्र का स्वामी माना जाता है ।
3 चन्द्रमा सूर्य और बुध का परम मित्र है और चन्द्रमा का अन्य ग्रहो के साथ सम भाव है ।
4 सूर्य और चंद्र भी परस्पर मित्र है तभी तो अमावस्या को सूर्य चंद्र को अपने आगोश में ले लेता है ।जहा यह दोनों एक साथ होते है और शुभ संयोग में होते है तो वह जातक को मानसम्मान दिलाते है। साथ ही जातक का पिता बहुत ही प्रभावशील वयक्ति होता है । यदि अशुभ संयोग हो तो जातक और उसके पिता को मानसिक वेदना भी देते है
5 चंद्र और मंगल ग्रह जहा यह दोनों एक साथ होते है वह जातक उच्च अधिकारी बनता है । साथ ही जातक का पिता सैन्य सेवा में उच्च शासकीय पद पर बहुत ही प्रभावशील वयक्ति होता है ।
6 चंद्र और बुध ग्रह जहा यह दोनों एक साथ होते है वह जातक और जातक का पिता दोनों ही धनवान और ज्ञानी होते है ।
7 चंद्र और शनि साथ होने से शत्रु नाशक बन जाते है ।
8 शुक्र और चंद्र साथ साथ होने से जातक और उसका पिता दोनों ही भोगविलासी प्रवर्ति के रहते है अपनी पत्नी के साथ अधिक अनुरागी होते है । सप्तम भाव में यदि शुक्र की युति हो तो जातक का जीवन साथी अधिक बुद्धिमान होता है और धन वैभव की कोई कमी नहीं होती बशर्ते जातक अलसी न हो। जातक का पिता जातक से अधिक धनवान होता है ।
9 चंद्र मंदा हो उनको सोमवार का व्रत करना चाहिए एवं प्रत्येक सोमवार को चन्द्रमा के समक्ष चंद्र के मन्त्र का यथाशक्ति जाप भी करना चाहिए ।
10 चंद्र का रंग सफ़ेद और यह चांदी धातु में फलित होता है एवं रत्न मोती होता है ।
मित्रो उपरोक्त वर्णित लेख में चंद्र और उसके साथी ग्रहो के बारे में जानकारी दी साथ ही जातक और उसके पिता की स्तिथि का भी विवेचन किया आशा करता हूँ की यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी ।
।। जय श्री कृष्ण ।।
0 टिप्पणियाँ