आज हम सुखद वास्तु हेतु अथर्वेदीय पैप्लाद शाखा में वर्णित गृह महिमा सूक्त का विवेचन करेंगे ।
इस सूक्त में घर में रहने वालो के लिए सुख सम्पति और ऐश्वर्य की कामना की गयी है।
यह सूक्त मै यहाँ हिन्दी भाषा में संक्षिप्त रूप में लिख रहा हूँ जिससे की सभी इसकी महत्ता को पहचान सके।
1 जब मैं मुदित मन से अपने घर में प्रवेश करता हूँ मैत्रीभाव से अपने घर को देखता हुवा इसमें जो रस है उसका ग्रहण करता हूँ।
2 यह घर सुख देने वाला हो धन धान्य से परिपूर्ण रहे और मेरी इसके साथ घनिष्ठता रहे।
3 जिन घरो में रहने वाले परस्पर मधुर भाषण करे संयुक्त प्रीतिभोज करे वह सब तरह का सौभाग्य निवास करता है उन घरो में कही से भी भय का संचार नहीं हो सकता है।
4 घर में प्रवास करते समय नित्य हरि सुमिरन बराबर होता है वह सहहृदयता की खान है ।
5 हमारे घर में दुधारू गौ माता का स्थायी निवास है जो अपना अमृत रास बरसाती रहती है ।
6 हमारे प्रेमीजन और बहुत ही प्रिय मित्र हमारे इन घरो में आते है परम स्नेह से हमारे साथ हमारे मांगलिक आयोजनों में सम्मिलित होते है ।
7 हे हमारे प्रिय घर तुम्हारे अंदर बसने वाले सभी प्राणियों रोगरहित और अक्षीण रहे, किसी भी प्रकार से उनका ह्रास न होने पाए ।
जो वयक्ति इस गृह महिमा सूक्त का प्रातः कल पाठ करता है या श्रवण करता है उसके गृह के वास्तु दोष दूर होकर उसका गृह और घर में रहने वालो के लिए सुख सम्पति और ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं रहती है ।
अथर्वेदीय पैप्लाद शाखा के मन्त्रद्रष्टा ऋषि के द्वारा इसकी रचना मानवकल्याण एवं जनहितार्थ की गयी थी श्रद्धा सहित इसका प्रतिदिन पाठ करने मात्र से ही सकल प्रदार्थो की प्राप्ति की जा सकती है ।
। जय श्री कृष्ण ।।
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