प्रस्तावना
भक्ति मार्ग में राधा रानी का स्थान सर्वोपरि है। भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि “मैं तो राधा के बिना अधूरा हूँ।” राधा जी केवल प्रेम और करुणा की मूर्ति नहीं हैं बल्कि भक्ति के सर्वोच्च शिखर की प्रतीक हैं।
श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र” एक ऐसा दिव्य स्तोत्र है जिसमें राधा रानी की कृपा दृष्टि का वर्णन है। यह स्तोत्र भक्त के हृदय में भक्ति की गंगा प्रवाहित करता है और जीवन को दिव्यता से भर देता है।
स्तोत्र का महत्व
यह स्तोत्र महापुरुष श्री हिता हरिवंश महाप्रभु द्वारा रचा गया है।
इसमें राधा रानी के कृपामय स्वरूप और उनकी अनुकंपा का वर्णन है।
भक्त यदि श्रद्धा से इसका पाठ करता है तो राधा रानी की कृपा कटाक्ष उस पर अवश्य पड़ती है।
यह स्तोत्र जीवन के सभी दुखों को हरकर शांति, प्रेम, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र के पाठ के लाभ
1. आध्यात्मिक लाभ
भक्ति में प्रगाढ़ता आती है।
मन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के चरणों में स्थिर होता है।
साधक को अनन्य प्रेम और समर्पण की अनुभूति होती है।
2. मानसिक लाभ
मन की अशांति दूर होती है।
चिंता, भय और तनाव मिटते हैं।
साधक के मन में आनंद और शांति का संचार होता है।
3. सांसारिक लाभ
घर-परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
वैवाहिक जीवन मधुर होता है।
जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता मिलती है।
4. दैवीय कृपा
राधा रानी की कृपा दृष्टि से भक्त को भगवान श्रीकृष्ण का सानिध्य प्राप्त होता है।
यह स्तोत्र साधक को दिव्य शक्ति से भर देता है।
श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
1. सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. राधा-कृष्ण की प्रतिमा अथवा चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएँ।
3. श्रद्धा और भक्ति भाव से “श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र” का पाठ करें।
4. यदि संभव हो तो माला लेकर जप करें।
5. पाठ के अंत में राधा रानी और श्रीकृष्ण का ध्यान करें और प्रार्थना करें।
स्तोत्र की विशेषता
यह स्तोत्र केवल 8 श्लोकों का है परंतु इसकी शक्ति अपार है।
हर श्लोक में राधा रानी के स्वरूप और उनकी कृपा का वर्णन है।
इसे बार-बार सुनने और पढ़ने से मन में अनोखी शांति और आनंद मिलता है।
पौराणिक और भक्तिपरक दृष्टांत
शास्त्रों में कहा गया है कि राधा कृपा के बिना श्रीकृष्ण की प्राप्ति संभव नहीं है। जिस भक्त पर राधा रानी प्रसन्न होती हैं, उसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रेम सहज ही मिल जाता है।
मीरा, सूरदास, रसखान जैसे महाकवि राधा-कृष्ण भक्ति के उदाहरण हैं।
उनकी भक्ति का आधार भी राधा जी का कृपाकटाक्ष ही था।
संगीत और भक्ति में स्तोत्र का महत्व
जब इस स्तोत्र का गायन या श्रवण संगीत के साथ किया जाता है, तो उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
यह भक्त के हृदय को स्पंदित करता है और आँखों में आँसू तक ला देता है।
राधा कृपा प्राप्ति के उपाय
शुक्रवार या सोमवार को विशेष रूप से यह स्तोत्र पढ़ना शुभ माना जाता है।
राधा-कृष्ण मंदिर में फूल, माखन, मिश्री अर्पित करें।
राधा नाम का 108 बार जप करें।
जरूरतमंद कन्याओं को वस्त्र और भोजन दान करें।
आधुनिक समय में महत्व
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य तनावग्रस्त और दुखी है। ऐसे समय में यदि श्रद्धा से श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ किया जाए तो जीवन में नई ऊर्जा, प्रेम और शांति आती है। यह स्तोत्र हमें भक्ति के पथ पर अग्रसर करता है।
॥ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र ॥
मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि
व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१॥
अशोक–वृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डप–स्थिते
प्रवालबाल–पल्लव प्रभारुणांघ्रि–कोमले ।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥२॥
अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥३॥
तडित्–सुवर्ण–चम्पक –प्रदीप्त–गौर–विग्रहे
मुख–प्रभा–परास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले ।
विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥४॥
मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते
प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलास – पण्डिते ।
अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥५॥
अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।
प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य –सागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥६॥
मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्ध–मोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥७॥
सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे
त्रिसूत्र–मङ्गली-गुण–त्रिरत्न-दीप्ति–दीधिते ।
सलोल–नीलकुन्तल–प्रसून–गुच्छ–गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥८॥
नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥९॥
अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्
समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।
विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१०॥
अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।
अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥११॥
मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥
निष्कर्ष
श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि भक्ति का अमृत है। यह स्तोत्र राधा रानी की अनुकंपा पाने का सशक्त माध्यम है।
जो भी भक्त प्रेम और श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उस पर राधा रानी की कृपा दृष्टि अवश्य होती है और उसका जीवन दिव्य आनंद से भर जाता है।
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