शीतला माता की कथा

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 08 मार्च, गुरुवार को शीतला सप्तमी  का व्रत है और 09 मार्च शुक्रवार को शीतला अष्टमी का व्रत है।


ऋतु परिवर्तन के समय शीतला माता का व्रत और पूजन करने का विधान है। शीतला माता का सप्तमी एवं अष्टमी को पूजन करने से दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोग नहीं होते। यदि आप व्रत रखने में सक्षम न हों तो मां को बाजरी की रोटी और बाज़री के आटे से बनी राबड़ी और  गुड़ अर्पित कर के  भी  प्रसन्न कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त माता की कथा श्रवण अवश्य करें तत्पश्चात आरती करें।

शीतला माता की कथा-


एक गांव में एक स्त्री रहती थी, जो शीतलाष्टमी (बासोड़ा) की पूजा करती और ठंडा भोजन लेती थी। एक बार गांव में आग लग गई। उसका घर छोड़कर बाकी सबके घर जल गए। गांव के सब लोगों ने उससे इस चमत्कार का रहस्य पूछा। उसने कहा कि मैं बासोड़ा के दिन ठंडा भोजन लेती हूं और शीतला माता का पूजन करती हूं। आप लोग यह कार्य तो करते नहीं हैं। इससे मेरा घर नहीं जला और आप सबके घर जल गए। तब से बासोड़ा के दिन सारे गांव में शीतला माता का पूजन आरंभ हो गया।


माना जाता है कि शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप हैं। चैत्र महीने में जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है, तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी होने लगते हैं। शीतलाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति के पीत ज्वर, फोड़े, आंखों के सारे रोग, चिकनपॉक्स के निशान व शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं। इस दिन सुबह स्नान करके शीतला देवी की पूजा करनी चाहिए। 

इसके बाद एक दिन पहले तैयार किए गए बासी खाने का भोग लगाया जाता है, क्योंकि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। इस व्रत को रखने से शीतला माता  खुश होकर वर्षपर्यन्त सुखी रहने और निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं।

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