भगवान सूर्य का व्रत का महत्त्व और कथा

नमस्कार दोस्तों ,



आज रविवार है इसलिए आज हम सबको दिखाई देने वाले भगवान सूर्य के व्रत का महत्त्व है और इसकी क्या विधि और कथा है और यह व्रत करने से क्या लाभ प्राप्त होते है व् भगवान सूर्य की कृपा कैसे प्राप्त होती है इसका विवेचन इस लेखमाला में करेंगे 




रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है


रविवार व्रत के नियम :-  इस व्रत को करने वाले को प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए और इसदिन तेल का परित्याग करना चाहिए क्योकि तेल शनि को प्रिय होता है। सूर्य और शनि वैसे तो पिता पुत्र है लेकिन एक दूसरे से शत्रुता रखते है ।इसलिए रविवार के दिन तेल का उपयोग वर्जित है इसदिन तेल का उपयोग करने से सूर्य भगवान नाराज़ हो जाते है। अतः व्रत करने वाले को तेल लगाना या तेल में तली हुयी सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए।  सूर्य अस्त होने से पूर्व ही व्रत पूर्ण करने का विधान है यदि किसी कारन वश सूर्य अस्त हो जाये और भोजन कर सके तो फिर अगले दिन सूर्योदय होने के पश्चात ही व्रत खोलना चाहिए।

रविवार व्रत का महत्त्व :- शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य पीडित अवस्था में हो, उन व्यक्तियों के लिये रविवार का व्रत करना विशेष रूप से लाभकारी रहता है। इसके अतिरिक्त रविवार का व्रत आत्मविश्वास में वृ्द्धि करने के लिये भी किया जाता है। इस व्रत के स्वामी सूर्य देव है. नवग्रहों में सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिये रविवार का व्रत किया जाता है। यह व्रत अच्छा स्वास्थय तेजस्विता देता है। शास्त्रों में ग्रहों की शान्ति करने के लिये व्रत के अतिरिक्त पूजन, दान- स्नान मंत्र जाप आदि कार्य किये जाते हैं। इनमें से व्रत उपाय को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। पूरे नौ ग्रहों के लिये अलग- अलग वारों का निर्धारण किया गया है। रविवार का व्रत समस्त कामनाओं की सिद्धि, नेत्र रोगों में मी, कुष्ठादि चर्म रोगों में कमी, आयु सौभाग्य वृ्द्धि के लिये किया जाता है। यह व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ करके कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक बारह वर्ष के लिये किया जा सकता है  रविवार क्योंकि सूर्य देवता की पूजा का दिन है। इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से सुख -समृ्द्धि, धन- संपति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिये इस व्रत का महत्व कहा गया है। रविवार का व्रत करने कथा सुनने से व्यक्ति कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस उपवास करने वाले व्यक्ति को मान-सम्मान, धन, यश और साथ ही उतम स्वास्थय भी प्राप होता है। रविवार के व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है। तथा स्त्रियों के द्वारा इस व्रत को करने से उनका बांझपन भी दूर करता है। इसके अतिरित्क यह व्रत उपवासक को मोक्ष देने वाला होता है।

रविवार के व्रत की कथा :-  एक बार एक बुढिया थी, उसके जीवन का नियम था कि व प्रत्येक रविवार के दिन प्रात: स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर शुद्ध करती थी। इसके बाद वह भोजन तैयार करती थी, भगवान को भोग लगा कर स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। यह क्रिया वह लम्बें समय से करती चली आ रही थी। ऎसा करने से उसका घर सभी धन - धान्य से परिपूर्ण था। वह बुढिया अपने घर को शुद्ध करने के लिये, पडौस में रहने वाली एक अन्य बुढिया की गाय का गोबर लाया करती थी। जिस घर से वह बुढिया गोबर लाती थी, वह विचार करने लगी कि यह मेरे गाय का ही गोबर क्यों लेकर आती है। इसलिये वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधले लगी। बुढिया गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से लीप कर शुद्ध न कर सकी। इसके कारण न तो उसने भोजन ही बनाया और न ही भोग ही लगाया. इस प्रकार उसका उस दिन निराहार व्रत हो गया। रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गई। रात्रि में भगवान सूर्य देव ने उसे स्वप्न में आकर इसका कारण पूछा. वृ्द्धा ने जो कारण था, वह बता दिया। तब भगवान ने कहा कि, माता तुम्हें सर्वकामना पूरक गाय देते हैं, भगवान ने उसे वरदान में गाय दी, धन और पुत्र दिया। और मोक्ष का वरदान देकर वे अन्तर्धान हो गयें. प्रात: बुढिया की आंख खुलने पर उसने आंगन में अति सुंदर गाय और बछडा पाया। वृ्द्धा अति प्रसन्न हो गई। जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी. साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है। उसने वह गोबर अपनी गाय  के गोबर से बदल दिया। रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी। भगवान ने देखा, कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है, तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया। सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही। अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी। उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है। राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली। बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा। उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया। सूर्य भगवान  ने राजा को  रात को उसे स्वपन  में गाय वापस बुढ़िया को  लौटाने को कहा. प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया। साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया। राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया। तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे। और वे खुशियों को प्राप्त हुए




दोस्तों, रविवार का व्रत करने और कथा श्रवण करने से जातक की कुण्डली का सूर्य प्रबल होता है और भगवान सूर्य की अनन्त कृपा प्राप्त होती है साथ ही शत्रु बाधा का निवारण भी होता है आत्मबल की वृद्धि होती है 





                              ।। जय श्री कृष्ण  

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