नमस्कार दोस्तों,
गौरी पुत्र गणेश और स्वास्तिक किस प्रकार हमारे विघ्नों का शमन करते है। इस विषय पर आज विशेष टिप्पणी लिखने जा रहा हूँ और ऐसी आशा करता हूँ की यह लेख आपके लिए महत्वपूर्ण हो और आप गणपति एवं स्वस्तिक का महत्त्व जान सके ।
गणपति ही आदि ब्रह्मा हैं। शिव मानस पूजा में इनको प्रणव (ॐ ) कहा गया है । इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग मस्तक, निचे का भाग उदर, चन्द्रबिन्दु लड्डू और मात्रा सूंड है।
माता पार्वती द्वारा गणपति की रचना की गयी तब त्रुटिवश शंकर भगवान द्वारा गणपति का मस्तक काट गया फिर शंकर भगवान ने गज का मुख लगाकर गणपति को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया ।
गणपति जिनका तेज सूर्य के सामान है। ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता हैं इसलिए गौरीपुत्र गणेश आदि देव है। इन्होने हर युग में अवतार लिया है । ज्योतिष शास्त्र में गणपति केतु ग्रह से सम्बंधित होते है केतु एक छाया ग्रह है जो राहु के विपरीत रहता है ।
प्रत्यक्ष रूप में सूर्य, दूषित वातावरण का शमन करता हैं ठीक उसी प्रकार स्वास्तिक हमारे जीवन के समस्त कार्यो के विघ्नों का शमन करता हैं एवं शुभ मांगलिक प्रतीक है। नौ अंगुल जितने आकर का स्वास्तिक सर्वश्रेस्ठ होता है ।
वास्तु शास्त्र में जब गृह निर्माण आरंभ किया जाता है तो सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह अंकित किया जाता है और स्वस्ति मन्त्र का उच्चारण किया जाता है। जिसके फ़लस्वरूप गृहस्वामी चिरंजीवी रहता है और गृहस्वामिनी वीर पुत्र को जन्म देती है।
यात्रा से पहले या किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक और स्वस्ति मंत्रो का वाचन कल्याणकारी रहता है ।
चित्रा नक्षत्र
रेवती नक्षत्र
चित्रा नक्षत्र से रेवती नक्षत्र तक सारे नक्षत्र इस स्वस्तिक में निहित होते हैं। इसी कारण स्वस्तिक का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व बन जाता हैं।
अतः ग्रह नक्षत्र सौरमंडल की सभी रचनाये और वस्तुए इस ऊर्जा से प्रभावित हैं ।
।। जय श्री कृष्णा ।।
0 टिप्पणियाँ