नमस्कार,
आज भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार श्री पुरषोतम मास का प्रारम्भ हो गया है। यह पुरषोतम मास प्रत्येक तीन वर्ष के पश्चात आता है हिन्दू पंचांग में तिथियों की संख्या में कमी वृद्धि होने के कारण प्रति तीन वर्ष पश्चात एक अधिक मास का आगमन होता है इसबार ज्येष्ठ मास में अधिक मास आया है यानि हिन्दू पंचांग में दो ज्येष्ठ मास होंगे जिनमे से एक अधिक मास या पुरषोतम मास कहलायेगा।
इस मास में विवाह, मुण्डन , यज्ञोपवीत संस्कार, नूतन गृह प्रवेश, नविन वस्त्र धारण करना, नामकरण संस्कार आदि अनेक सुभ कार्य निषिद कहे गए है।
इसको मलमास की संज्ञा देकर जब सभी इसका तिरस्कार किया तो भगवान विष्णु ने इसको अपनाकर अपना नाम दिया तब से इसकी महत्व और बढ़ गया इसको पुरषोतम मास के नाम से जाना जाने लगा।
इस मास में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्त्व होता है इस मास में पुरे महीने व्रत रखा जाता है और व्रत करने वाला भूमि पर शयन करता है। दिन में एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए एवं श्री विष्णु भगवान का जप कीर्तन हवन आदि पुरे महीने करना चाहिए।
रोग व्याधि नाश के लिए यह मास अति उत्तम है इस मास में महामृत्युंजय जप यज्ञ अनुष्ठान आदि करना उत्तम फलदायी होता है एवं भगवन पुरषोतम की कृपा से जप यज्ञ अनुष्ठान आदि कार्य शीघ्रता से सिद्ध होते है रोगी की रोग निवर्ती शतप्रतिशत होती है। इस मास में तीर्थो का स्नान भी सुभ पलदायी होता है।
इस मास में यथाशक्ति शुद्ध घी के मालपुवे बनाकर उनके साथ फल और वस्त्र आदि कांसी के पात्र में रखकर प्रीतिदिन दान करने से परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुरषोतम मास में प्रीतिदिन की अलग अलग कथा होती है जिनका वर्णन आगे की लेखमालाओ में प्रीतिदिन की कथा का समावेश किया जायेगा इसलिए आने वाली लेखमालाओ को प्रीतिदिन अध्ययन करते रहे।
। । जय श्री कृष्ण । ।
आज भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार श्री पुरषोतम मास का प्रारम्भ हो गया है। यह पुरषोतम मास प्रत्येक तीन वर्ष के पश्चात आता है हिन्दू पंचांग में तिथियों की संख्या में कमी वृद्धि होने के कारण प्रति तीन वर्ष पश्चात एक अधिक मास का आगमन होता है इसबार ज्येष्ठ मास में अधिक मास आया है यानि हिन्दू पंचांग में दो ज्येष्ठ मास होंगे जिनमे से एक अधिक मास या पुरषोतम मास कहलायेगा।
इस मास में विवाह, मुण्डन , यज्ञोपवीत संस्कार, नूतन गृह प्रवेश, नविन वस्त्र धारण करना, नामकरण संस्कार आदि अनेक सुभ कार्य निषिद कहे गए है।
इसको मलमास की संज्ञा देकर जब सभी इसका तिरस्कार किया तो भगवान विष्णु ने इसको अपनाकर अपना नाम दिया तब से इसकी महत्व और बढ़ गया इसको पुरषोतम मास के नाम से जाना जाने लगा।
इस मास में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्त्व होता है इस मास में पुरे महीने व्रत रखा जाता है और व्रत करने वाला भूमि पर शयन करता है। दिन में एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए एवं श्री विष्णु भगवान का जप कीर्तन हवन आदि पुरे महीने करना चाहिए।
रोग व्याधि नाश के लिए यह मास अति उत्तम है इस मास में महामृत्युंजय जप यज्ञ अनुष्ठान आदि करना उत्तम फलदायी होता है एवं भगवन पुरषोतम की कृपा से जप यज्ञ अनुष्ठान आदि कार्य शीघ्रता से सिद्ध होते है रोगी की रोग निवर्ती शतप्रतिशत होती है। इस मास में तीर्थो का स्नान भी सुभ पलदायी होता है।
इस मास में यथाशक्ति शुद्ध घी के मालपुवे बनाकर उनके साथ फल और वस्त्र आदि कांसी के पात्र में रखकर प्रीतिदिन दान करने से परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुरषोतम मास में प्रीतिदिन की अलग अलग कथा होती है जिनका वर्णन आगे की लेखमालाओ में प्रीतिदिन की कथा का समावेश किया जायेगा इसलिए आने वाली लेखमालाओ को प्रीतिदिन अध्ययन करते रहे।
। । जय श्री कृष्ण । ।
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