नमस्कार मित्रो,
आज हम पुरषोत्तम मास के महात्यम के प्रथम अध्याय के बारे में जानेंगे
एक बार नेमिषारण्य तीर्थ पर बहुत से मुनिजन यज्ञ आदि प्रयोजन से एकत्र हुवे ।
उसी समय महाशरणं मन्त्र का उच्चारण करते हुवे सूतजी वहाँ पहुँच गये । सूतजी को आया हुवा देखकर सभी मुनिजन सूतजी के स्वागत हेतु उनके पास जाकर आदर सत्कार और प्रणाम करने लगे ।
सभी मुनिजनों ने हाथ जोड़कर सूतजी को दंडवत प्रणाम किया और उनके लिए आसन बिछाया ।
इसके पश्चात मुनिजन बोले हे सूतजी आपको गुरु कृपा से भागवत कथा का वर्णन करने की दैवीय सक्ति प्राप्त है परंतु आज आप हमें संसार सागर में डूबते हुवे को बचाने के लिए जो सर्व श्रेष्ठ कथा हो वही सुनाइये ।
सूतजी बोले की आप सभी मनोइच्छा को ध्यान में रखते हुवे में अपनी तीर्थ यात्रा का व्रतांत सुनाता हूँ ।
सबसे पहले मैं तीर्थराज पुष्कर गया फिर वहां से हस्तिनापुर गया और देखा की राजा परीक्षित कई ऋषि मुनियों सहित गंगा किनारे जा रहे थे में भी गंगा तीर्थ पंहुचा तो मैने देखा की महर्षि वेद व्यास जी के पुत्र सुकदेव जी जो बड़े कमल के आसन पर विराजमान थे उनके मुख की कान्ति अति मनोरम थी एवं स्वर और सब्द का मधुर संयोजन उनके श्री मुख से निकल रहा था अति मनोरम वातावरण था मानो प्रकुति भी उनसे कथा श्रवन हेतु प्रेरित होकर आयी हो । दूसरा अध्याय अगले पृष्ठ पर पढ़े।
।। जय श्री कृष्ण ।।
।। जय श्री कृष्ण ।।
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