पुरषोत्तम मास चौथा अध्याय

नमस्कार,

श्री पुरुषोत्तम मास माहात्म्य चौथा अध्याय

अधिक मास कहने लगा है हे कृपासिंधु हे जगत के पालनहार मैं सभी की ओर से तिरस्कृत होकर आपके पास आया हूं।

हे कृपा सागर अपनी कृपा मुझ पर बरसाए मेरा जो अपमान हुआ है मेरी जो निंदा हुई है मेरा जो तिरस्कार हुआ है उसके कारण मैं बहुत व्याकुल और दुखी हो गया हूं।

हे दयानिधि मुझ पर अपनी दया दृष्टि कीजिए मुझे अपनी शरण में ले कर कृतार्थ कीजिए अब मेरा आपके सिवा और कोई नहीं है।

आप ही मेरे एकमात्र सहारा हो इस प्रकार के वचनों को कहकर अधिकमास भगवान के सामने बैठकर आंसू बहाने लगा तब भगवान श्रीकृष्ण अधिक मास के दुख को देखकर द्रवीभूत  हो गए ।

श्री कृष्ण भगवान कहने लगे हे अधिक मास तुम मेरी शरण में आए हो अब तुम्हारा कल्याण होगा तुम्हारी कीर्ति चारों और फैलेगी और जो तुम से प्रेम करेगा उस पर मेरी कृपा सदैव बनी रहेगी।

अधिक मास बोला हे कृपा सागर जब आपने मुझे अपनी शरण में ले ही लिया है तो मुझे कोई अच्छा सा नाम भी दीजिए क्योंकि मलमास मलमास यह नाम सुनते सुनते मैं अत्यंत दुखी हो गया हूं।

सभी देवताओं ने मेरा निरादर किया मुझे किसी ने आश्रय नहीं दिया इसलिए है कृपा सागर मैं आपकी शरण में आया हूं मेरा उद्धार कीजिए इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण के समक्ष स्तुति करते-करते अधिकमास शांत होकर बैठ गया



                             ।। जय श्री कृष्ण ।।

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