पुरषोत्तम मास तीसरा अध्याय

नमस्कार,

पुरषोत्तम मास माहात्म्य तीसरा अध्याय

हे नारद जी जो कुछ भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर से कहा वही मैं तुमसे कहता हूं।

एक समय धर्मराज युधिष्ठिर जुए में  दुर्योधन से अपना सारा राजपाट हारकर एवं अपनी पत्नी द्रौपदी को भी हार गए फिर दुष्ट दुशासन ने द्रौपदी को भरी सभा में वस्त्रहीन करने हेतु बाल पकड़कर खींचना प्रारंभ कर दिया।

उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की इसके पश्चात राजा युधिष्ठिर द्रौपदी और पांचों पांडव वन में चले गए वन में रहने के कारण पांचो पांडव और द्रौपदी अत्यंत दुखी रहने लगे।

उसी समय भगवान श्रीकृष्ण उस वन में पधारें और पांडवों को अत्यंत दुखी देखकर भगवान श्री कृष्ण भी अत्यंत दुखी हो गए राजा युधिष्ठिर  ने भगवान श्रीकृष्ण को  जुए में सब कुछ हारने और द्रौपदी के दुर्योधन द्वारा मान भंग करने का सारा वृत्तांत सुनाया।

यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत क्रोधित हो गए दुर्योधन को भस्म करने के लिए ऐसा भयानक रूप बनाया जिसको देखकर पांचो पांडव एवं द्रौपदी भयभीत हो गए फिर अर्जुन ने हाथ जोड़कर भगवान जगन्नाथ की स्तुति की।

अर्जुन ने कहा हे कृष्ण! हे जगन्नाथ! हे नाथ! मैं जगत से बाहर नहीं हूं फिर आप मेरी रक्षा क्यों नहीं करते आप तो सारे जगत की रक्षा करने वाले हो जिनके नेत्र बंद करने से ब्रह्मा का पतन हो जाता है जिनके क्रोध करने से सारे विश्व का पतन हो जाता है।

हे जगत के स्वामी इस संसार को भयभीत  करनेवाले रूप को और क्रोधित रूप को दूर कीजिए अर्जुन के द्वारा की गई इस प्रकार की स्तुति से भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत शीतल हो गए फिर पांचों पांडवों और द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की और बारंबार नमस्कार किया और अपने दुखों के निवारण हेतु उपाय सुझाने के लिए प्रश्न किया।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने प्रत्युत्तर में कहा कि हे अर्जुन एक समय में संयोगवश अधिक मास आया तब सभी ने उसकी निंदा कि उसे मलमास कहा उसे निरर्थक और असहाय बना दिया इस प्रकार लोगों के वचन सुनकर वह अधिक मास कांतिहीन होकर मेरे पास बैकुंठधाम में आया।

उसने मुझ को दंडवत प्रणाम किया और नेत्रों से आंसू बहता हुआ इस प्रकार कहने लगा।  चौथा अध्याय अगले पृष्ठ पर पढ़े। 


                           ।। जय श्री कृष्ण ।।

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