संक्षित गीतासार

नमस्कार दोस्तों,


आज हम इस लेखमाला में  भगवान श्री कृष्ण ने गीता में दिए गए उपदेशो का संक्षित सार का विवेचन करेंगे ।
महाभारत के युद्ध के समय जब कौरवो और पांडवो की सेनाये आमने सामने हुयी थी तब महावीर धनुर्धारी अर्जुन अपने सगे-संबंधियों को युद्ध भूमि में देखकर शिथिल हो गए तब उनके सारथि बने भगवान श्री कृष्ण ने मोह से व्याप्त हुवे अर्जुन को आत्मा,धर्म,कर्म,ज्ञान  और भक्ति योग आदि  का महवपूर्ण उपदेश दिया जिसे गीता नाम से जाना जाता हैं ।




मनुष्यो को अपने जीवन में उत्पन्न कठिनाइयों से लड़ने के लिए गीता में बताये गए उपदेशो का आचरण करना चाहिए ।


गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को निम्न 5 बातें मानव कल्याण हेतु बताई गयी थी जो आज भी मानव जाति के लिए पूर्ण उपयोगी हैं :-


1          कर्मफल - गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को निष्काम कर्म करना चाहिये कर्म करते हुवे फल की इच्छा नहीं करनी चाहिये क्योंकि फल की इच्छा ही निष्काम कर्म के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है । कर्म करते हुवे व्यक्ति यदि उस कर्म में अपना निजी हित मिला लेता है तो वह पापी कहलाता है ।


2          इंद्रजीत बनना -  गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखता है उसकी बुद्धि उसके स्वयं के अनुसाशन में रहती हैं इसलिये मनुष्य को इंद्रजीत बनना चाहिये न की अपनी इंद्रियों को बल पूर्वक दमन करना चाहिये ।


3          क्रोध नियंत्रण - गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक हैं क्योंकि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि का नाश होता हैं जब बुद्धि का नाश हो जाता है तो मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है ।


4          परिवर्तन - गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि परिवर्तन ही श्रष्टि का नियम है क्योंकि आज जो वास्तु आपकी हैं वह पहले किसी  अन्य की थी और भविष्य में किसी अन्य की हो जायेगी इसलिए यह परिवर्तन का चक्र चलता रहेगा ।


5          ईश्वर में समर्पण - गीत में श्री कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को सदैव सर्वशक्तिमान ईश्वर में समर्पण भाव रखना चाहिये जिसके फलस्वरूप वह भय, चिंता और निराशा पूर्ण जीवन से मुक्त रहता हैं ।

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                                                                 ।। जय श्री कृष्ण ।।

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