कुण्डली के द्वादश भावो में शनि का फल


कुण्डली  के द्वादश भावो में शनि का क्या फल होता है।  प्रस्तुत लेख में लग्न से लेकर व्यवस्थान तक के शनि का फल कथन कहा गया है। प्रस्तुत फल कथन केवल अकेले शनि का है यदि उसके साथ कोई अन्य ग्रह उस भाव  में बैठा हो तो फल कथन भिन्न हो जाता है।



लग्न में शनि 

अधिकतर सरकारी कार्यालय में नौकरी करते है। मिथुन का शनि हो तो दो विवाह भी होते है। तुला का शनि हो तो माता पिता दीर्घायु होते है। लग्नस्थ शनि अगर शुक्र से दूषित हो तो विवाह सुख अच्छा नहीं मिलता है।

द्वितीय स्थान में शनि 

सार्वजनिक और राष्ट्रीय कार्यक्रमो में अधिक भाग लेते है। धन और मानसम्मान अधिक मिलता है परन्तु धन का संचय नहीं कर पाते है। धन का उपयोग जमीन जायदाद खरीदने में अधिक करते है। दुसरो की सलाह नहीं मानते है केवल अपने स्वयं के विचारो से कार्य करते है।

तृतीय स्थान में शनि 

अधिकतर  नास्तिक होते है। एकलौती संतान होते है। बाल्यावस्था में ही रोजगार करना पड़ता है। जीवन संघर्ष भरा होता है।

चतुर्थ स्थान में शनि 

दो विवाह की सम्भावना रह सकती है। जज वकील या डॉक्टर हो सकते है। न्यायप्रिय और अतिथि सत्कार में कुशल  होते है।


पञ्चम  स्थान में शनि 

रेलवे बैंक  बिमा कम्पनी या नगर निगम में राजकीय सेवा करते है। सन्तान सुख से वंचित रहना। पत्नी में गर्भ विकार होना।


षस्टम स्थान में शनि 

राजकीय सेवारत होते है परन्तु शारीरिक कमजोरी के कारण असमय पेंशन लेनी पड़ती है। शत्रु बहुत होते है परन्तु कायम नहीं रहते है। मौसी का जीवन कस्टप्रद होता है।

सप्तम स्थान में शनि 

संकट के समय पत्नी धैर्य से संकट का उन्मूलन करवाती है। पति पत्नी में गहरा प्रेम भाव होता है। क़ानूनी क्षेत्र से धनार्जन होता है।


अष्टम स्थान में शनि 

यहाँ शनि विनाश का सूचक है। सम्पति और सन्तान दोनों में से एक का विनाश होता है। वासनाये क्षीण करके मृत्यु का पूर्वाभास कराता है।

नवम स्थान में शनि 

दरिद्रयोग का निर्माण होता है।  भाइयो से मनमुटाव रहता है।  बार बार अपमानित होना पड़ता है।


दशम स्थान में शनि 

बाल्यकाल में माता पिता का वियोग होता है। राजकीय सेवारत हो तो राजदण्ड मिलता है। जन्म स्थान को छोड़कर विदेश में उन्नति संभव होती है।


एकादश स्थान में शनि 

कुशल नेता बनता है। लगातार चुनाव में जीत होती है। प्रधान पद मिलता है।



द्वादश स्थान में शनि 
गुप्त शत्रुओ से हानि होती है। अशुभ फल तीव्रता से मिलते है। यहाँ शनि शोकपूर्ण प्रवर्ति का निर्माण करता है।



ऊपर लिखे गए द्वादश भावो के फल अकेले शनि के है यदि शनि के साथ कोई अन्य ग्रह उस स्थान में बैठा हो तो फल कथन में भिन्नता आ जाती है।

शनि स्वयं न्यायप्रिय और कर्मफल के दाता है।

सटीक फल कथन के लिए अन्य ग्रहो की दशा और दिशा पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।

प्रस्तुत लेख में केवल अकेले शनि का फल कथन कहा गया है।

विस्तृत और सटीक फल कथन के लिए अपनी जन्म कुण्डली का विश्लेषण किसी योग्य ज्योतिषी से कराना हितकर रहता है।

ज्योतिष में उपाय,  दान और मन्त्र  साधना से ग्रह की पीड़ा या मारक क्षमता को कम किया जा सकता है।

















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