षटतिला एकादशी में काले तिल से विष्णु जी का पूजन करने का विशेष महत्व होता है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
षटतिला एकादशी व्रत कैसे करें-
एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में जागकर स्नान आदि से निवृत होकर पूजा घर में भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करते हुए व्रत का संकल्प लें।
इस व्रत में दिन भर निराहार रहना होता है, फलों का सेवन कर सकते हैं। शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन कर तुलसी के पौधे के पास एक दीपक जलाएं। अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
षटतिला एकादशी की कथा-
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से एकादशियों का माहात्म्य सुनकर श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रणाम करते हुए अर्जुन ने कहा- “हे केशव! आपके श्रीमुख से एकादशियों की कथाएं सुनकर मुझे असीम आनंद की प्राप्ति हुई है।
हे मधुसूदन! कृपा कर अन्य एकादशियों का माहात्म्य सुनाने की भी अनुकम्पा करें।”
इस पर भगवान श्री कृष्ण बोले “हे अर्जुन! अब मैं माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी व्रत की कथा सुनाता हूँ-
एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा- “हे ऋषि श्रेष्ठ ! मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महापाप करते हैं और दूसरे के धन की चोरी तथा दूसरे की उन्तति देखकर ईर्ष्या आदि करते हैं।”
ऐसे महान पाप मनुष्य क्रोध, ईर्ष्या, आवेग और मूर्खतावश करते हैं और बाद में शोक करते हैं।
हे महामुनि! ऐसे मनुष्यों को नरक से बचाने का क्या उपाय है।
कोई ऐसा उपाय बताने की कृपा करें, जिससे ऐसे मनुष्यों को नरक से बचाया जा सके अर्थात उन्हें नरक की प्राप्ति न हो।
ऐसा कौन-सा दान-पुण्य है, जिसके प्रभाव से नरक की यातना से बचा जा सकता है, इन सभी प्रश्नों का हल आप कृपापूर्वक बताइए।”
दालभ्य ऋषि की बात सुन पुलत्स्य ऋषि ने कहा- “हे मुनि श्रेष्ठ! आपने मुझसे अत्यंत गूढ़ प्रश्न पूछा है।
इससे संसार में मनुष्यों का बहुत लाभ होगा। जिस रहस्य को इंद्र आदि देवता भी नहीं जानते, वह रहस्य मैं आपको अवश्य ही बताऊंगा।
माघ मास आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिए और इंद्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या तथा अहंकार आदि से सर्वथा बचना चाहिए।
पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उपले बनाने चाहिए। इन उपलों से 108 बार हवन करना चाहिए।
स्नानादि नित्य कर्म से देवों के देव भगवान श्रीहरि का पूजन व कीर्तन करना चाहिए।
उस दिन श्रीविष्णु को पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य अवश्य देना चाहिए, तदुपरांत उनकी स्तुति करनी चाहिए- “हे जगदीश्वर! आप निराश्रितों को शरण देने वाले हैं। आप संसार में डूबे हुए का उद्धार करने वाले हैं।
हे कमलनयन! हे मधुसूदन! हे जगन्नाथ! हे पुण्डरीकाक्ष! आप लक्ष्मीजी सहित मेरे इस तुच्छ अर्घ्य को स्वीकार कीजिए।”
इसके पश्चात ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा और तिल दान करने चाहिए। इस प्रकार मनुष्य जितने तिलों का दान करता है। वह उतने ही सहस्र वर्ष स्वर्ग में वास करता है।
तिल स्नान
तिल की उबटन
तिलोदक
तिल का हवन
तिल का भोजन
तिल का दान
इस प्रकार इन 6 रूपों में तिलों का प्रयोग षटतिला कहलाती है। इससे अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
इतना कहकर पुलस्त्य ऋषि ने कहा- “अब मैं एकादशी की कथा सुनाता हूँ-
एक बार नारद मुनि ने भगवान श्रीहरि से षटतिला एकादशी का माहात्म्य पूछा, वे बोले- “हे प्रभु! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें। षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है। उसकी क्या कथा है, कृपा कर मुझसे कहिए।”
नारद की प्रार्थना सुन भगवान श्रीहरि ने कहा- “हे नारद! मैं तुम्हें प्रत्यक्ष देखा हुवा सत्य वृत्तांत सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
बहुत पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा व्रत-उपवास किया करती थी। एक बार वह एक मास तक उपवास करती रही।
इससे उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। वह अत्यंत बुद्धिमान थी। फिर उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्नादि का दान नहीं किया।
मैंने चिंतन किया कि इस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है तथा इसको वैकुंठ लोक भी प्राप्त हो जाएगा, किंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है।
अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है। ऐसा चिंतन कर मैं मृत्युलोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी।
इस पर उस ब्राह्मणी ने कहा-“हे योगीराज! आप यहां किसलिए पधारे हैं।”
मैंने कहा- “मुझे भिक्षा चाहिए।” इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया। मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया।
कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्यागकर स्वर्ग आई। मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित घर मिला, किंतु उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया।
वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली- “हे प्रभु! मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रिक्त है, इसका क्या कारण है।”
मैंने कहा- “तुम अपने घर जाओ और जब देव-स्त्रियां तुम्हें देखने आएं, तब तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और उसका विधान पूछना, जब तक वह न बताएं, तब तक द्वार नहीं खोलना।”
प्रभु के ऐसे वचन सुन वह अपने घर गई और जब देव-स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहने लगीं, तब उस ब्राह्मणी ने कहा- “यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले मुझे षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताएं।”
तब उनमें से एक देव-स्त्री ने कहा- “यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ध्यानपूर्वक श्रवण करो- मैं तुमसे एकादशी व्रत और उसका माहात्म्य विधान सहित कहती हूं।”
जव उस देव-स्त्री ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया, तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देव-स्त्रियों ने ब्राह्मणी को सब स्त्रियों से अलग पाया।
उस ब्राह्मणी ने भी देव-स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से उसका घर अतुल धन्य-धान्य से भर गया।
अतः हे पार्थ! मनुष्यों को अज्ञान को त्यागकर षटतिला एकादशी का उपवास करना चाहिए। इस एकादशी व्रत के करने वाले को जन्म-जन्म की निरोगता प्राप्त हो जाती है। इस उपवास से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।”
कथा का सारतत्व
इस उपवास को करने से जहां हमें शारीरिक पवित्रता और निरोगता प्राप्त होती है। वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है।
इससे यह भी सिद्ध होता है कि मनुष्य जो-जो और जैसा दान करता है। मृत्यु पश्चात उसे फल भी वैसा ही प्राप्त होता है।
अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता।
षटतिला एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त-
षटतिला एकादशी 20 जनवरी को प्रात: 04 बजकर 05 मिनट पर लग रही है जो कि 21 जनवरी को प्रात: 01 बजकर 44 मिनट तक रहेगी।
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