अपरा एकादशी 2020 : 18 मई 2020 अपरा एकादशी व्रतकथा और माहात्म्य

अपरा एकादशी जैसा नाम है वैसा ही इसका पुण्य अपार हैं अर्थात जिसकी कोई सीमा नहीं हैं।



पद्म पुराण के अनुसार अपरा एकादशी व्रत करने से मनुष्य प्रेतयोनि से मुक्ति पाकर भव सागर को पार कर जाता है इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की अपार कृपा प्राप्त होती हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी ही अपरा एकादशी के नाम से विख्यात है जो की इस वर्ष 18 मई 2020 को हैं।

अपरा एकादशी का माहात्म्य

श्री कृष्ण ने युधिष्ठर को बताया कि अपरा एकादशी पुण्य प्रदाता और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। ब्रह्मा हत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला, परनिंदक, परस्त्रीगामी भी अपरा एकादशी का व्रत रखने से पापमुक्त होकर श्री विष्णु के लोक मे जाता है।

अपरा एकादशी की कथा 

महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।

ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।


                          ।। जय श्री कृष्ण ।।


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